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Lichen in Hindi ( लाइकेन क्या है ? )

इस Article में Lichen in Hindi ( लाइकेन क्या है ? ) के बारे में पढ़ेंगे। इसके अतिरिक्त इसमें Symptoms of lichen in Hindi (लाइकेन के लक्षण ), Classification of lichen in Hindi ( लाइकेन का वर्गीकरण ), Types of Lichen in Hindi (लाइकेन के प्रकार ), Reproduction in Lichen in Hindi (लाइकेन में प्रजन ), Importance of Lichen in Hindi (लाइकेन के महत्व ) आदि पढ़ेंगे ।

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What is Lichen in Hindi (लाइकेन क्या है?)

प्रकृति में कई ऐसे पौधे भी मिलते हैं जिनमें दो अलग प्रकार के पौधे परस्पर आपस में घनिष्ट संबंध बनाकर रखते हैं। अर्थात् दोनों पौधों को एक दूसरे से कुछ न कुछ लाभ पहुँचता हैं।

लाइकेन(Lichens) ऐसे ही पौधों के समूह का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।

लाइकेन (Lichens) एक किस्म के मिश्र जीव (Composite organisms) हैं जो कि कवक (एस्कोमाइसिटीज अथवा बैसिडियोमाइसिटीज) तथा शैवाल (सायनोबक्टीरिया) के घने संबंधों या
सहचर्य के परिणामस्वरूप बनते हैं।

लाइकेन के कवक को mycobiont तथा शैवाल को phycobiont कहते हैं। दोनों परस्पर रहते हुए एक सूकाय (thallus) बना लेते हैं और एक ही जीवधारी की तरह व्यवहार करते हैं। लाइकेन थैलस एक प्रकार से परस्पर सहजीविता का उदाहरण है।

शैवाल द्वारा कवक को भोजन प्रदान किया जाता है और कवक द्वारा शैवाल को सुरक्षा, जल, नाइट्रोजन वाले पदार्थ एवं खनिज लवण प्रदान किए जाते हैं।

Symptoms of lichen in Hindi (लाइकेन के लक्षण )

लाइकेन पूरे विश्व में पाए जाते हैं। ये विभिन्न स्थानों जैसे- पेड़ों के तनों, दीवारों, चट्टानों व मिट्टी आदि पर पाए जाते हैं। समुद्र के किनारों से लेकर पहाड़ों के ऊचें शिखर पर भी ये देखने को मिलते हैं।

लाइकेन विभिन्न प्रकार के आधारों पर उगे हुए पाए जाते हैं। जैसे कि वृक्षों की पत्तियों एवं छाल, प्राचीन दीवारों, भूतल, चट्टानों आदि में ये प्रायः पाये जाते हैं।
ये समान्यतः सफ़ेद रंग के होते हैं, परन्तु कभी-कभी ये लाल, नारंगी, बैंगनी, नीले एवं भूरे तथा अन्य रंगों के भी पाए जाते हैं। इनके बढ़ने की गति धीमी होती है।

उष्णकटिबंधीय वनों में या जहाँ वर्षा अत्यधिक होती है वहाँ लाइकेन बहुत ज्यादा पाए जाते हैं। जहाँ नमी बहुत अधिक मात्रा में पायी जाती हैं और तापक्रम कम होता है, उन स्थानों पर लाइकेन अधिक मिलते हैं।
कुछ लाइकेन ऐसी परिस्थितियों में भी पनप जाते हैं जिनमें कोई दूसरे प्रकार के पौधे नहीं पनप सकते हैं।

Classification of lichen in Hindi ( लाइकेन का वर्गीकरण )

अलग-अलग वर्ग के पौधें का समूह होने के कारण लाइकेन के वर्गीकरण के बारे में मतभेद है।
बैसी तथा मार्टिन नामक वैज्ञानिकों के अनुसार, “इसे कवक के साथ समूह यूमाइकोफाइटा में रखा जाना चाहिए”।
प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री बोल्ड ने इसे नया समूह माइक्रोफाइकोफाइटा नाम दिया।

इस नाम से पौधे की रचना का सही पता चलता है कि इसकी रचना में शैवाल तथा कवक दोनों सम्मिलित हैं। स्मिथ ने तो इसे अलग समूह लाइकेन में ही रखा।

Types of Lichen in Hindi (लाइकेन के प्रकार )

लाइकेन के पूरे thailus में यदि शैवाल की कोशिकाएँ बिखरी रहती हैं तो लाइकेन होमीयोमीरम कहते है
यदि शैवाल की कोशिकाएँ निश्चित पर्त में होती है तो सूकाय हेटरोमीरम कहते है|

लाइकेन को उसके बाह्य आकारिकी के और संरचना के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है :-

  1. क्रस्टोस (Crustose)
  2. फोलिओज (Foliose)
  3. फ्रूटीकोज (Fruticose)

क्रस्टोस (Crustose)

जिसमें थैलस चपटा तथा आधार लम्बा होता है और आधार के साथ पूरी तरह से चिपका रहता है। अधिकांश क्रस्ट्रोज लाइकेन का थैलस चमड़े जैसा होता है|
उदाहरण:- ग्रेफिस, वेरुकेरिया, हिमेटोमा आदि इसके उदाहरण हैं।

फोलिओज (Foliose)

जिसमें थैलस पत्तियों के समान दिखता है।
उदाहरण :-गायरोफोरा, पेल्टीजिरा (Peltigera), परमीलिया (Permelia)

फ्रूटीकोज (Fruticose)

जिसमें थैलस बहुत विकसित व शाखा युक्त होता है और जनन अंग उपस्थित होता है। इसकी कुछ शाखाएँ सीधी होती हैं, तथा कुछ शाखाएँ लटकी हुई होती हैं।
उदाहरण :- इवरनिया, असनिया आदि इसी के अन्तर्गत आते हैं।

Reproduction in Lichen in Hindi (लाइकेन में प्रजन )

लाइकेन में प्रजनन निम्न तीन प्रकार से होता है:-

कायिक प्रजनन

ये प्रजनन विखंडन के द्वारा होता है। इस प्रकार के प्रजनन के लिए कुछ विशेष रचनाएँ बनती है जो निम्न हैं :

सोरोडिया : ये एक या एक से अधिक शैवाल कोशिकाओं की गोलाकार रचनाएँ होती हैं, जिनमें शैवाल और कवक दोनों ही होते हैं। ये हवा से वितरित होते हैं और फिर अंकुरित होकर नये लाइकेन को जन्म देते हैं।
आइजीडिया : ये वृत्त और उभार जैसी रचनाएँ होती हैं, जिनमें शैवाल तथा कवक होते हैं।
सिफेलोडिया : ये थैलस के ऊपर एक विशेष प्रकार की रचनाएँ होती हैं जो गहरे रंग की होती हैं। इनमें एक प्रकार की कवक तथा विभिन्न प्रकार की शैवाल होती हैं।
सिफेली : कुछ लाइकेन की निचली सतह पर गोलाकार गुहाएँ होती हैं जो मज्जा में खुलती हैं तथा मुख्य रूप से हवा के आदान-प्रदान के लिए होती हैं|

अलिंगी प्रजनन

बहुत छोटे आकर के गहरे रंग के बीजाणु फ्लाक्स के आकर के पिक्नीडिया में विकसित होते हैं। ये बीजाणु अंकुरित होकर अपने चारों ओर कवक सूत्र की शाखाओं का निर्माण करते हैं। ये शाखाएँ जब शैवाल के सम्पर्क में आती हैं तो लाइकेन का विकास होता है।

लिंगी प्रजनन

लाइकेन में केवल कवक के भाग में ही लिंगी प्रजनन होता हैं| मादा अंग कार्पोगोनियम (carpogonia) एक मुड़ी हुई बहुकोशिकीय रचना होती है जिसमें एक बहुकोशिकीय ट्राइकोगाइन होती है|

नर अंग स्पर्मोगोनियम (Spermatogonia) एक फ्लाक्स के आकर की रचना होती हैं, जो बहुत सारे स्पर्मेशिया में बदलते हैं और ओस्टीयोल (Ostiole) के द्वारा बहार निकलते हैं। ये जब ट्राइकोगाइन (Trichogyne) के सम्पर्क में आते हैं, तो दोनों के मध्य की भित्ति विघटित हो जाती हैं और निषेचन (Fertilization) की क्रिया हो जाती है| इसके परिणामस्वरूप एस्कोजीनस तन्तु (Ascogenous Hyphae) का निर्माण होता है। जो एस्कोमाइसिटिज कवक (Ascomycetes Fungi) के समान पेरीथेसियम तथा एपोथेसियम बना देते हैं।

Importance of Lichen in Hindi (लाइकेन के महत्व )

  1. लाइकेन मृदा निर्माण (soil formation) में बहुत सहायक होते हैं।
  2. अनेक लाइकेन खाद्य पदार्थ के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। जैसे -ध्रुव प्रदेशो में, आर्कटिक (Arctic) में रेन्डियर मॉस (Reindeer moss) या क्लेडोनिया (caledonia) को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  3. आइसलैंड मॉस (iceland moss) स्वीडन, नार्वे तथा आइसलैंड जैसे यूरोपीय देशों में केक बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
  4. दक्षिण भारत में परमेलिया (Permelia) सालन (Curry) बनाने में उपयोग आता है।
  5. आर्चिल (OrchiI), लेकनोरा (Lecanora) लाइकेन से नीला रंग प्राप्त किया जाता है।
  6. प्रयोगशाला में प्रयोग करने के लिए लिटमस पेपर रोसेला (Rocella) नामक लाइकेन से प्राप्त किया जाता है।
  7. लोबेरिया पल्मोनेरिया (Lobaria Pulmonaria) तथा कुछ अन्य लाइकेन सुगन्ध के रूप में प्रयोग किये जाते हैं|
  8. इरबेनिया (Ervenia) रेमेनिला (Ramanila) आदि लाइकेन से इत्र (Perfurmes) बनाया जाता है।
  9. मिरगी (Epilepsi) रोग की औषधि बनाने में परमेलिया सेक्सटिलिस (Permelia sextilis) का उपयोग किया जाता है।
  10. डायरिया, हाइड्रोफोबिया, पीलिया, काली खाँसी आदि रोगों में उपयोगी विभिन्न प्रकार की औषधियाँ लाइकेन से बनायी जाती हैं।

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