इस Article में हम Microorganisms in Hindi ( सूक्ष्मजीव ) पढ़ेंगे। जिसमे पढ़ेंगे What is Microorganisms in Hindi ( सूक्ष्मजीव क्या है ?), सूक्ष्म जीव का रूप, सूक्ष्म जीव का उपयोग आदि।
What is Microorganisms in Hindi
कुछ ऐसे जीव जिनका आस्तित्व है लेकिन उन्हें अपनी नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है और इन सूक्ष्मजीवों को देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है। पाए जाने वाले इस सूक्ष्मजीवों में बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, शैवाल और कवक आदि आते है । वैसे तो इन वायरस को जीवित जीव की श्रेणी में नहीं माना जाता है, लेकिन सूक्ष्मजीवों को फिर भी कभी-कभी सूक्ष्म रूप के जीवों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
अर्थात ये कहा जा सकता है कि सूक्ष्मजीव वे छोटे जीव है जिन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी के द्वारा ही देखा जा सकता है; जैसे, अमीबा, पैरामीशियम, वॉल्वॉक्स, स्पाइरोगाइरा, आदि इन सभी प्रकार के सूक्ष्मजीवों को उनके आकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
सूक्ष्मजीव बेहद ही सूक्ष्म जीव होते हैं जो हमारी प्रकृति में मुख्य रूप से विधमान है इन सूक्ष्मजीवों को एककोशिकीय, बहुकोशिकीय या कोशिका के समूहों के रूप में समझ जा सकता है । प्रकृति में व्याप्त ये सूक्ष्मजीव बहुत ही व्यापक रूप में हैं और ये सूक्ष्मजीव हमारे जीवन के लिए फायदेमंद हैं, लेकिन कभी कभी ये सूक्ष्मजीव कुछ गंभीर नुकसान के कारन हो जाते है ।
सूक्ष्मजीव का रूप
सूक्ष्मजीवों को कुछ इस प्रकार से से विभाजित किया जा सकता है जिनमे छः प्रकार ये है : बैक्टीरिया, आर्किया, कवक, प्रोटोजोआ, शैवाल और वायरस।
प्रोटोजोआ इन सूक्ष्मजीवों के अंतर्गत आता है, ज्यादातर इस समूह के अन्तर्गत आने वाले सूक्ष्मजीव एक कोशिकीय होते हैं। इस प्रकार के सूक्ष्मजीव जल, मिट्टी, पौधों एवं जानवरों के शरीर में पाये जाते है। अमीबा, पैरामीशियम एवं युग्लीना प्रोटोजोआ समुदाय के अंतर्गत आने वाले सूक्ष्मजीव हैं और इनके अंतर्गत आने वाले जीवों की कोशिका पूर्ण रूप से जन्तु की कोशिका के समान होती है।
सूक्ष्मजीव का उपयोग
आज के प्रदूषित समय में विकसित देशों में जीवाणुओं के द्वारा होने वाले संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि से सम्बंधित कार्यों में प्रतिजैविक कार्यो और प्रयोगों के लिए उपयोग किया जाता है, इसी कारण से जीवाणुओं में प्रतिजैविक दवाओं के प्रति अपनी प्रतिरोधक शक्ति निरंतर बढ़ती और विकसित होती जाती है। औद्योगिक क्षेत्र में दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण किया जाता है जो कि जीवाणुओं की किण्वन क्रिया के द्वारा ही किया जाता है।
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कृषि उत्पाद
कृषि के उत्पादों की बढ़ती हुई माँगों को पूरा करने के लिए रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है जो कि प्रदुषण का कारन बनता है लेकिन इन समस्याओं को समझ रहे रहे लोग अब जैविक खेती करने और खेती में जैव उर्वरकों के प्रयोग को बढावा दे रहे है । आज के समय में लगभग भारत में सभी बाज़ारो पर भी जैव उर्वरकों की एक बड़ी संख्या उपलब्ध की जा रही है । इन जैव उर्वरकों को किसान अपने खेतों लगातार उपयोग कर रहे है और इसके लगातार उपयोग से खेती के लिए मृदा को पोषक की भरपाई हो रही है तथा अब रसायन उर्वरकों पर खेती ज्यादा निर्भर नहीं हो रही है।
जैव उर्वरक
जैव उर्वरक एक प्रकार के सूक्ष्मजीव जिनके उपयोग से मृदा की पोषक गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। इन सूक्ष्मजीव का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। अन्य कुछ जीवाणु जैसे कि ऐजोस्पाइरिलम तथा ऐजोबैक्टर भी मृदा में महोते है और ये भी जैव उर्वरक जैसे सूक्ष्मजीव की तरह ही वायुमंडलीय नाइट्रोजन को खेती के लिए स्थिर करते हैं और इस प्रकार से ये सूक्ष्मजीव मृदा में नाइट्रोजन अवयव बड़ादेते है।
कवक
कवक जैसे जीव पादपों के साथ अपने सहजीवी संबंध को करते है जिनसे मृदा के फास्फोरस का अवशोषण किया जाता है और उसे पादपों में भज दिया जाता है। इस संयोजन में ग्लोमस जीनस के बहुत से सदस्य होते है जो माइकोराइजा बनाते हैंऔर बने हुए ऐसे संबंधों से भरपूर पादप में कई अन्य लाभ विकसित हो जाते है जैसे रोगजनक के प्रति प्रतिरोधकता का उत्पन्न होना, लवणता की सही व्याप्त होना तथा सूखे के प्रति पादपों में सहनशीलता तथा पादपों में कुलवृद्धि तथा विकास की दशा दिखयी देती है।
सायनोबैक्टीरिया
सायनोबैक्टीरिया एक ऐसा सूक्ष्मजीव है जो स्वपोषित हैं जो जलीय तथा स्थलीय दोनों तरह के वायुमंडल में विस्तृत रूप से रहता है । इनमे वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत करने गुण होते है, ये इसप्रकार है जैसे- ऐनाबीना, नॉसटॉक, ऑसिलेटोरिया आदि। धान की खेतीमें ये सायनोबैक्टीरिया महत्त्वपूर्ण रूप से जैव उर्वरक के लिए उत्तरदायी होते है।
नील हरित शैवाल भी सूक्ष्मजीव की भूमिका में महत्वपूर्ण योगदान देते है , इनके प्रयोग से मृदा में कार्बनिक पदार्थ बढ जाते है , जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ जाती है।