Virology in Hindi (विषाणु विज्ञान) जीव विज्ञान में वायरोलॉजी क्या है? वायरोलॉजी का अर्थ क्या है?

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What is Virology in Hindi (विषाणु विज्ञान क्या है ?)

जैविक विषाणु और विषाणु सम के अलग-अलग वर्गों संरचनाओं विकास प्रजनन वृद्धि दर कोशिका और संक्रमण पद्धति के साथ-साथ उनके द्वारा होने वाले रोगों के बारे में जानकारी एकत्रित करना तथा उनके रोगों के इलाज के प्रति शोध प्रयोग और अध्ययन करना विषाणु विज्ञान कहा जाता है। इसे सूक्त में जैविकी या विकृति विज्ञान का एक अंग भी कहा जा सकता है। तो आज आप हमारी इस विशेष पेशकश में जानेंगे विषाणु विज्ञान से जुड़े कई तथ्य, जैसे विषाणु संरचना, वर्गीकरण, बीमारियां, शोध, उपचार, इतिहास एवं अन्य कई महत्वपूर्ण जानकारियां।

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Classification of Virology in Hindi (विषाणु की संरचना एवं उनका वर्गीकरण )

विषाणु विज्ञान को समझने से पहले हमें विषाणु की संरचना और उनके वर्गीकरण को समझना बेहद आवश्यक है। विषाणु को मुख्य रूप से पशु विषाणु पादप विषाणु, कवक विषाणु आदि वर्गों में उनके द्वारा फैलाए संक्रमण के आधार पर बांटा गया है। उनके आकार प्रकार के आधार पर भी उनका वर्गीकरण किया गया है। विषाणु का आकार इतना सूक्ष्म होता है कि उन्हें साधारण सूक्ष्मदर्शी के जरिए भी नहीं देखा जा सकता। सबसे छोटा विसरण 30nm का हो सकता है वही सबसे बड़े विषाणु के आकार के बात करें तो वह 450 nm का हो सकता है। इन सूक्ष्म आकृति के विषाणुओं को देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी और एनएमआर स्पेक्ट्रोस्कॉपी का उपयोग किया जाता है। एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी द्वारा भी इन विषयों को देखा जा सकता है।

वर्गीकरण के आधार पर विषाणु मुख्य रूप से 3 तरह के होते हैं।

  1. डीएनए विषाणु
  2. आर एन ए विषाणु
  3. रिवर्स ट्रांसक्रिप्ट्स विषाणु

विषाणु टैसोनांमी पर अंतरराष्ट्रीय समिति द्वारा अब तक कुल 5450 विषाणु खोजे जा चुके हैं। जिन्हे 2000 स्पीशीज, 287 जेनेरा, 73 परिवार और तीन आर्डर में बांटा गया है।

विषाणु की उत्पत्ति कैसे होती है?

हालांकि विषाणु समूहों के विकास के संबंध में आज तक स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया है लेकिन फिर भी अब तक की खोजों के अनुसार विषाणु की उत्पत्ति के तीन काल्पनिक कारण हो सकते हैं।

एकमत के अनुसार विषाणु अजैविक पदार्थों से उत्पन्न होते हैं और उनमें स्व प्रजनन सेल क्षमता पाई जाती है।

वैज्ञानिकों की एक अन्य राय है के विषाणु एक कौशिकी जीव है जो अपने पैदा करने वाली कोशिका पर परजीवी के रूप में पलता है।

विषाणु की उत्पत्ति के बारे में तीसरा महत्व यह है कि वह अपने आप को उत्पन्न करने वाली कोशिका के टूट जाने पर उसके साथ संक्रमण कर नए जीव उत्पन्न करता है।
विषाणु की उत्पत्ति के यह तीनों संभावित कारण अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग परिस्थितियों में लागू हो सकते हैं। क्योंकि उदाहरण के तौर पर अमीबा संक्रमण का आता है और प्रोकरयोटिक एक परजीवी विषाणु है।

विषाणु मतलब रोग पैदा करने वाले वाहक

विषाणु का नाम लेते ही मुख्य रूप से आपके दिमाग में कई तरह के रोगों के बारे में विचार आने लगते हैं।यह सही भी है क्योंकि विषाणु संक्रामक रोग के सबसे बड़े कारणों में से एक है। जुखाम, रैबिज, खसरा, दस्त हेपेटाइटिस, पीलिया, पोलियों, चेचक, एड्स और कोरोनावायरस तक सभी बीमारियां विषाणु की देन है। ऑनकोवायरस नामक विषाणु कैंसर का कारण भी बन सकते हैं। विषाणुओं के रोग फैलाने की क्षमता और उसके इलाज हेतु किए जाने वाले अध्ययन को विषाणवीय रोग जनन या वायरल पथोजेनेसिस कहा जाता है। विषाणु के रोग फैलाने की सीमा को वायरूलेसं कहा जाता है।

विषाणु रोग कैसे फैलाते हैं?

जब किसी व्यक्ति पर विषाणु का हमला होता है तो उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता या एंटीबॉडी कैपेसिटी उन विषयों से लड़ने की कोशिश करती है। ऐसे में यदि व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वास्थ्य है और इससे पहले वह संक्रमण का शिकार नहीं हुआ है तो विशाल उस पर कम असर डालते हैं या आंशिक रूप से असर डालकर खत्म हो जाते हैं। लेकिन यदि व्यक्ति शारीरिक व कमजोर है और पहले भी संक्रमण का शिकार हो चुका है तो विषाणु उसे अपनी चपेट में ले लेते हैं। इस प्रकार संबंधित विषाणु संबंधित रोग का कारण बनते हैं। विषाणु के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में टीकाकरण एक कारगर उपाय सिद्ध हुआ है। टीकाकरण के द्वारा व्यक्ति के शरीर में प्रतिरोधक तत्व या तो पहले से ही डाल दिए जाते हैं या व्यक्ति के शरीर में ही प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण किया जाता है। अधिकांश विषाणु अपनी जनक कोशिका को नष्ट कर देते हैं लेकिन यह सभी विषयों पर लागू नहीं होता। कई विषाणु अपने जनक कोशिका के साथ जीवन बिताते हैं।
उदाहरण के तौर पर इनफ्लुएंजा सूअर या पक्षियों के द्वारा फैलाए जाने वाला एक विषाणु है। लेकिन यह विषाणु अपने होस्ट यानी सुअर या पक्षियों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाते।

विषाणु की रोकथाम और उपचार

वैरोलिअशन एक चीनी शब्द है जो हजारों वर्ष पहले टीकाकरण के नाम पर प्रयोग किया जाता था। इस पद्धति में चेचक के रोगियों के शरीर से प्राप्त तरल पदार्थ से चेचक की दवाई बनाना शुरू किया गया। 1796 सर एडवर्ड जेनर ने एक युवा लड़के को चेचक उन्मुक्त करने के लिए एक बेहद सुरक्षित तरीके के साथ प्रयोग शुरू किया।प्रयोग सफल रहा और धीरे-धीरे अन्य विषाणु जनित वायरल रोगों के टीके बनाए गए। 1886 में लुइ पाश्चर ने रेबीज का टीका बनाया।

विषाणु को लेकर रोचक तथ्य

  1. यह कौशा रूप में नहीं होते।
  2. इन्हें बोतल में बंद कर कई सालों तक रखा जा सकता है। या किसी अन्य कोशिका में पहुंचते ही संश्लेषण शुरू कर देते हैं।
  3. विषाणु गुणन यानी मल्टीप्लिकेशन की विधि के द्वारा प्रजनन करते हैं। यानी एक से दो, दो से चार, चार से आठ और आठ से सोलह।

क्या आप सोच सकते हैं विषाणु से लाभ भी होते हैं।

जी हां आपने बिल्कुल सही पड़ा विषाणु सजीव और निर्जीव दोनों परिस्थिति में रह सकते हैं इस गुण के कारण इनका उपयोग जेव विकास के अध्ययन किया गया है। जीवन जल को सड़ने से रोकने में सहायक है इसीलिए जल को खराब होने से बचाने के लिए विषाणुभौजी मतलब बैक्टीरियाफेज का उपयोग किया जाता है।